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लेखनी कहानी -21-Jun-2022 पिता

कविता : पिता 

हर मुश्किल में वे चट्टान बन कर अड़े थे ।
हर जरूरत के समय, मेरे पास ही खड़े थे।।

दुनिया की हकीकतों से रूबरू कराने वाले थे।
सही ग़लत की मुझको पहचान कराने वाले थे ।।

दिखने में बहुत सख्त मगर नर्म दिल इन्सान थे ।
दुनिया की नजरों में पिता पर मेरे लिए भगवान थे

घोड़ा बनकर पहली सवारी उन्होंने ही करवाई थी 
कंधे पे बिठा के रामलीला भी उन्होंने ही दिखाई थी 

उनके रौबीले चेहरे पर पूरे परिवार को फक्र होता था
डांट डपट का भयंकर रूह तक असर होता था ।।

उंगली थाम के चलने में जो सुकून मिलता था ।
गांव देहात के अनेक किस्सों में जनून मिलता था 

मेहनत की एक एक पाई की कीमत वो जानते थे
हर रिश्ते की मर्यादा अच्छी तरह से पहचानते थे 

एक "गुरू मंत्र" उनका मेरे कानों में गूंजता है
इसीलिए मेरा मन उनको  आज तलक पूजता है

"नाकामियों को पीछे छोड़ आगे ही बढ़ते जाना है
आसमानों के सीने पे नाम अपना लिखकर आना है" 

उनकी शान में चाहे कुछ भी लिखूं कम लगता है
बेटा चाहे कुछ भी बन जाये बाप से छोटा रहता है

आज के दिन हो सके तो उनके अधरों को मुस्कान दें 
जिस सम्मान के वो हकदार हैं, उन्हें वहीं सम्मान दें।।

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1 Comments

Shrishti pandey

21-Jun-2022 10:41 AM

Nice

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